राजनीति के कई लोग एक सवाल खड़ा कर रहे हैं. उनको जवाब:-
सवाल : कानून संविधान के मुताबिक संसद में बनते हैं वह संसद ही बनाएगी.
जवाबः ऐसा सवाल खड़ा करके हमारे राजनेता जनता की दिशाभूल कर रहे हैं. हमने एक बार नहीं सैंकडों बार कहा है कि संविधान के मुताबिक कानून संसद में ही बनते हैं. लेकिन लोकशाही यानि जनतंत्र अथवा प्रजातंत्र में कानून का मसौदा(ड्राफ्ट) बनाना है तो वह समाज के अनुभवी लोगों को लेकर, सरकार ने बनाना है. ऐसे मसौदे को इंटरनेट और दूसरे माध्यमों के ज़रिए देश की जनता के सामने रखा जाना चाहिए. जनता उस ड्राफ्ट को पढ़ेगी, कुछ कमियां दिखाई देंगी तो जनता सुझाव करेगी. जनता से मिले सभी सुझावों को लेकर संसद में रखा जाना चाहिए.
लोकशाही का मतलब है लोगों ने, लोगों के लिए, लोगों के सहभाग से चलाई हुई शाही. वह है लोकशाही? डा. बाबा साहब अंबेडकर जी ने संविधान को संसद में रखते हुए पहला शब्द दिया था – ”हम भारत के लोग”. २६ जनवरी १९५० में देश में प्रजा सत्ता का दिन मनाया गया. उसी दिन से जनता इस देश की मालिक हो गई. सरकारी तिजोरी में जमा होने वाला पैसा जनता का पैसा है. इस तिजोरी में से सरकार जो पैसा जमा या खर्च करती है उसका हिसाब किताब जनता को देना ज़रूरी है. कारण कि यही प्रजातंत्र है. उस पैसे के ऊपर जनता का कोई नियंत्रण न होने के कारण और उसका हिसाब किताब जनता को न दिए जाने के कारण भ्रष्टाचार बढ गया है.
जनता इस देश की मालिक है. संविधान के माध्यम से प्रतिनिधि लोकशाही को हम भारतवासियों ने स्वीकार किया है. राज्य की विधान सभा में जनता अपने प्रतिनिधि के रूप में, अपने सेवक के रूप में, विधायक को भेजती है और लोकसभा के लिए सांसद को भेजती है. संविधान कहता है कि जनता के सेवकों को जनता के विकास के लिए उनके पैसों का सही नियोजन करना है. इसलिए लोकसभा और विधानसभाओं को कानून बनाने हैं. लेकिन जनलोकपाल जैसा बिल आठ बार लोकसभा में आकर भी पास नहीं किया गया.
कानून लोकसभा में बनते हैं यह बात बराबर है लेकिन आठ बार लोकसभा में आकर भी बिल पास नहीं हुआ इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? जनता इस देश की मालिक है और मालिक ने अपने सेवकों को भेजा है. सेवक जब कानून नहीं बना रहे तो मालिक होने के नाते जनता को पूछने का हक है कि जनलोकपाल कानून क्यों नहीं बनाया गया?
हमारा संविधान अस्तित्व में आए ६३ साल बीत गए. लेकिन जनता देश की मालिक है और हम जनता के सेवक हैं यह बात इन सेवकों को समझ में नहीं आई. यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है. किसी दफ्तर में नागरिक अपने काम करवाने जाते हैं और कुछ पूछ लें तो कहा जाता है कि ”आप पूछने वाले कौन?”. जिस प्रकार जनप्रतिनिधियों को हम जनता ने अपने सेवक के रूप में भेजा है उसी प्रकार राष्ट्रपति जी ने जिन आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस. जैसे सनदी अधिकारियों का चयन किया वह भी गवर्नमेंट सरवेंट हैं. जनप्रतिनिधि एवं सभी सरकारी सेवक जनता के सेवक हैं. ”हमसे पूछने वाले आप कौन” ऐसा कह कर ये लोग संविधान का अपमान कर रहे हैं.
अंग्रेज़ जुल्मी था. उसे भारत को लूटना था. इसलिए उसने अपनी मनमर्जी से कानून बनवाए और देश की जनता पर अन्याय व अत्याचार करता रहा. इस तरह वह नाजायज और अमानवीय कानून के आधार पर भारत को लूट ले गया. अब हम प्रजातंत्र में हैं. गणतंत्र में हैं. लोकशाही में हैं. अब कोई भी कानून बनाना है तो उसका ड्राफ्ट बनाते समय जनता के अनुभवी लोगों को साथ में लेकर ही ड्राफ्ट बनाना है. और तब कानून बनाने के लिए उसे संसद में भेजना है. मैं उम्मीद करता हूं कि राजनीति के लोग इस बात को समझेंगे.
कि.बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
जवाबः ऐसा सवाल खड़ा करके हमारे राजनेता जनता की दिशाभूल कर रहे हैं. हमने एक बार नहीं सैंकडों बार कहा है कि संविधान के मुताबिक कानून संसद में ही बनते हैं. लेकिन लोकशाही यानि जनतंत्र अथवा प्रजातंत्र में कानून का मसौदा(ड्राफ्ट) बनाना है तो वह समाज के अनुभवी लोगों को लेकर, सरकार ने बनाना है. ऐसे मसौदे को इंटरनेट और दूसरे माध्यमों के ज़रिए देश की जनता के सामने रखा जाना चाहिए. जनता उस ड्राफ्ट को पढ़ेगी, कुछ कमियां दिखाई देंगी तो जनता सुझाव करेगी. जनता से मिले सभी सुझावों को लेकर संसद में रखा जाना चाहिए.
लोकशाही का मतलब है लोगों ने, लोगों के लिए, लोगों के सहभाग से चलाई हुई शाही. वह है लोकशाही? डा. बाबा साहब अंबेडकर जी ने संविधान को संसद में रखते हुए पहला शब्द दिया था – ”हम भारत के लोग”. २६ जनवरी १९५० में देश में प्रजा सत्ता का दिन मनाया गया. उसी दिन से जनता इस देश की मालिक हो गई. सरकारी तिजोरी में जमा होने वाला पैसा जनता का पैसा है. इस तिजोरी में से सरकार जो पैसा जमा या खर्च करती है उसका हिसाब किताब जनता को देना ज़रूरी है. कारण कि यही प्रजातंत्र है. उस पैसे के ऊपर जनता का कोई नियंत्रण न होने के कारण और उसका हिसाब किताब जनता को न दिए जाने के कारण भ्रष्टाचार बढ गया है.
जनता इस देश की मालिक है. संविधान के माध्यम से प्रतिनिधि लोकशाही को हम भारतवासियों ने स्वीकार किया है. राज्य की विधान सभा में जनता अपने प्रतिनिधि के रूप में, अपने सेवक के रूप में, विधायक को भेजती है और लोकसभा के लिए सांसद को भेजती है. संविधान कहता है कि जनता के सेवकों को जनता के विकास के लिए उनके पैसों का सही नियोजन करना है. इसलिए लोकसभा और विधानसभाओं को कानून बनाने हैं. लेकिन जनलोकपाल जैसा बिल आठ बार लोकसभा में आकर भी पास नहीं किया गया.
कानून लोकसभा में बनते हैं यह बात बराबर है लेकिन आठ बार लोकसभा में आकर भी बिल पास नहीं हुआ इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? जनता इस देश की मालिक है और मालिक ने अपने सेवकों को भेजा है. सेवक जब कानून नहीं बना रहे तो मालिक होने के नाते जनता को पूछने का हक है कि जनलोकपाल कानून क्यों नहीं बनाया गया?
हमारा संविधान अस्तित्व में आए ६३ साल बीत गए. लेकिन जनता देश की मालिक है और हम जनता के सेवक हैं यह बात इन सेवकों को समझ में नहीं आई. यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है. किसी दफ्तर में नागरिक अपने काम करवाने जाते हैं और कुछ पूछ लें तो कहा जाता है कि ”आप पूछने वाले कौन?”. जिस प्रकार जनप्रतिनिधियों को हम जनता ने अपने सेवक के रूप में भेजा है उसी प्रकार राष्ट्रपति जी ने जिन आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस. जैसे सनदी अधिकारियों का चयन किया वह भी गवर्नमेंट सरवेंट हैं. जनप्रतिनिधि एवं सभी सरकारी सेवक जनता के सेवक हैं. ”हमसे पूछने वाले आप कौन” ऐसा कह कर ये लोग संविधान का अपमान कर रहे हैं.
अंग्रेज़ जुल्मी था. उसे भारत को लूटना था. इसलिए उसने अपनी मनमर्जी से कानून बनवाए और देश की जनता पर अन्याय व अत्याचार करता रहा. इस तरह वह नाजायज और अमानवीय कानून के आधार पर भारत को लूट ले गया. अब हम प्रजातंत्र में हैं. गणतंत्र में हैं. लोकशाही में हैं. अब कोई भी कानून बनाना है तो उसका ड्राफ्ट बनाते समय जनता के अनुभवी लोगों को साथ में लेकर ही ड्राफ्ट बनाना है. और तब कानून बनाने के लिए उसे संसद में भेजना है. मैं उम्मीद करता हूं कि राजनीति के लोग इस बात को समझेंगे.
कि.बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
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