Tuesday, 8 September 2015

Toronto to host IGLTA’s 35th Annual Global Convention
International travel association returns to Canada’s premier LGBT destination in 2018

Mumbai (7 September 2015)—The International Gay & Lesbian Travel Association is Canada-bound in 2018, bringing its Annual Global Convention to Toronto for the second time in the association’s history. IGLTA’s board of directors selected Ontario’s capital city – long celebrated for its vibrant LGBT community – for the 35th edition of the conference, 9-12 May 2018.
The convention, the leading educational and networking event for the LGBT tourism industry, will take place at the downtown Westin Harbour Castle hotel on the shores of Lake Ontario.
“Canada stands at the forefront of gay and lesbian rights, and our 2009 convention in Toronto was one of our best attended,” says IGLTA Board Chair Dan Melesurgo. “Toronto is truly a diverse, multicultural city that has world-class attractions and unique neighborhoods, including a large and popular gay village. We’re excited to return in 2018 and set the bar even higher.”
Toronto’s reputation as an LGBT-welcoming destination continues to grow. WorldPride 2014 united advocates and allies from around the globe in Toronto, attracting an estimated 2 million visitors over the course of the 10-day festival, and the city’s annual gay pride event is one of the largest in North America.ࠠ
“Our tourism community looks forward to welcoming IGLTA in 2018,” said Andrew Weir, Chief Marketing Officer of Tourism Toronto. “The world is taking notice of Toronto’s vibrancy and progressive spirit that makes this not only a welcoming destination but also one of North America’s most exciting cities to explore.”

About IGLTA
The International Gay & Lesbian Travel Association is the leading member-based global organization dedicated to LGBT tourism and a proud Affiliate Member of the United Nations World Tourism Organization. IGLTA’s mission is to expand LGBT tourism globally for the benefit of travelers and members. The association’s membership includes LGBT and LGBT-friendly accommodations, destinations, service providers, travel agents, tour operators, events and travel media in 80 countries. For more information, visit iglta.org and follow us on Facebook, Twitter and Instagram @iglta. Convention updates are available at iglta.org/convention.
About Tourism TorontoTourism Toronto, Toronto’s Convention and Visitors Association, is an industry association of more than 1,100 members established to sell and market the greater Toronto region as a remarkable destination for tourists, convention delegates and business travelers around the globe. Tourism Toronto operates in partnership with the Greater Toronto Hotel Association and the Ontario Ministry of Tourism, Culture and Sport.ࠆor more information, visit SeeTorontoNow.com. ༯:p>

The Innovation Workgroup
To
Naresh Kumar
Today at 10:44 AM

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस – 8 सितंबर पर विशेष
सिर्फ अक्षर ज्ञान से नहीं सधेगा टिकाऊ विकास
वर्ष 2011 की जनगणना मुताबिक 74.04 प्रतिशत भारतीयों को अक्षरज्ञानी कहा जा सकता है। वर्गीकरण करें, तो 82.14 प्रतिशत पुरुष और 65.46 महिलाओं को आप इस श्रेणी में रख सकते हैं। आप कह सकते हैं कि आगे बढने और जिंदगी की रेस में टिकने के लिए अक्षर ज्ञान जरूरी है। इस संदर्भ मंे उनके इस विश्वास से शायद ही किसी को इंकार हो कि इसमें साक्षरता की भूमिका, मुख्य संचालक की हो सकती है। किंतु क्या साक्षरता का मतलब सिर्फ वर्णमाला के अक्षरों और मात्राओं को जोङकर शब्द तथा वाक्य रूप में पढ़ लेना मात्र है ? क्या मात्र अक्षर ज्ञान हो जाने से हम हर चीज के बारे में बुनियादी तौर पर ज्ञानी हो सकते हैं ?
नहीं!
संयुक्त राष्ट्र द्वारा ’साक्षरता और टिकाऊ समाज’ को इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का मुख्य विचार बिंदु तय किया गया है। गौर कीजिए कि यह बिंदु, हमारे उत्तर का समर्थन करता है। टिकाऊ विकास के स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में सक्षमता हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विचारकों ने भी सिर्फ साक्षरता को नहीं, बल्कि सीखने का वातावरण को न्यूनतम आवश्यकता के रूप में महत्व दिया है। ’सीखने का वातावरण’ – हम भारतीयों को इसके मंतव्य पर खास ध्यान देने की जरूरत है। वे कहते हैं कि टिकाऊ समाज के निर्माण के लिए व्यापक ज्ञान, कौशल, व्यवहार और मूल्यों की आवश्कता है। यह सच है कि ये सभी आवश्यकतायें हमें टिकाऊ विकास की भी बुनियादी आवश्यकतायें हैं। इसी के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने खास निवेदन किया है कि टिकाऊ विकास के भावी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें यह वर्ष साक्षरता और टिकाऊ विकास का जुङाव व सहयोग सुनिश्चित करने हेतु समर्पित करना चाहिए।
अक्षर ज्ञान से कितना आगे राष्ट्रीय साक्षरता मिशन ?
आप संतुष्ट हो सकते हैं कि यह बात भारत के राष्ट्रीय साक्षरता मिशन द्वारा बहुत पहले समझ ली गई थी; इसीलिए साक्षरता मिशन के कार्यक्रम, आज अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं हैं; इसीलिए मिशन के संपूर्ण साक्षरता अभियान और उत्तर साक्षरता अभियान की संकल्पना की। इन अभियानों को नवसाक्षर को खासतौर पर आसपास के परिवेश और जरूरी कौशल के बारे में साक्षर और सक्षम बनाने के उद्देश्य से डिजायन किया गया है।
प्रकृति प्रेमी इस बात से संतुष्ट हो सकते हैं कि भारत सरकार के साक्षरता मिशन ने अन्य विषयों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को विशेष उद्देश्य के रूप में चिन्हित किया है। किंतु इस बात आप असंतुष्ट भी हो सकते हंै कि राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के कार्यक्रम इस दिशा में रस्म अदायगी से बहुत आगे नहीं बढ़ सके हैं। कहने को आज भारत के 424 एवम् 176 जिले क्रमशः संपूर्ण साक्षरता और उत्तर साक्षरता अभियानों की पहुंच में है। किंतु भारत मंे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण मंे सामाजिक पहल की सुस्त दर बताती है कि जरूरत रस्म अदायगी से कहीं आगे बढ़ने की है। बगैर औपचारिक-पंजीकृत संगठन बनाये ऐसी पहल के उदाहरण तो और भी कम हैं।
कितने निरक्षर हम ?
दरअसल, हमें साक्षरता की आवश्यकता हवा, पानी, नमी, जंगल, पठार, पहाङ से लेकर अनगिनत जीवों और वनस्पतियों.. सभी की बाबत् है। क्या यह सच नहीं कि अक्षर ज्ञान रखने वाले ही नहीं, उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों में भी आज प्रकृति और प्राकृतिक संरक्षण के मसलों को लेकर अज्ञान अथवा भ्रम कायम हैं। नदी जोङ ठीक है या गलत ? कोई कहता है कि ’रन आॅफ रिवर डैम’ से कोई नुकसान नहीं; कोई इसे भी नदी के लिए नुकसानदेह मानता है। कोई नदी को खोदकर गहरा कर देने को नदी पुनर्जीवन का काम मानता है; कोई इसे नदी को नाला बना देने का कार्य कहता है। किसी के लिए नदी, नाला और नहर में भिन्नता भी साक्षर होने का एक विषय है। कोई गाद और रेत के फर्क और महत्व को ही नहीं समझता। कोई है, जो गाद और रेत निकासी को सब जगह अनुमति देने के पक्ष में नहीं है। कोई मानता है कि जितने ज्यादा गहरे बोर से पानी लाया जायेगा, वह उतना अच्छा होगा। किसी की समझ इससे भिन्न है।
पानी-पर्यावरण साक्षरता के विषय कई
ज्यादातर लोग आज मानते हैं कि ’आर ओ’ प्रक्रिया से प्राप्त पानी को आपूर्ति किए जा रहे पानी तथा भूजल से बेहतर हैं; जबकि कई विशेषज्ञ ’आर ओ’ प्रक्रिया से गुजरे पानी को सामान्य अशुद्धि जल से ज्यादा खतरनाक मानते हैं। वे कहते हैं कि ’आर ओ वाटर’ बाॅयलर और बैटरी के लिए मुफीद है, जीवों के पीने के लिए नहीं। उनका तर्क है कि ’आर ओ’ प्रक्रिया मंे प्रयोग होने वाली झिल्ली सिर्फ खनिजों को ही वहीं नहीं रोक लेती, बल्कि ऐसे जीवाणुओं का भी वहीं खात्मा कर देती हैं, जो हमारे भोजन को पचाने में के लिए सहयोगी हैं; जिन्हे प्रकृति ने हमें असल पानी के साथ मुफ्त दिया है। लिहाजा, ’आर ओ वाटर’ इसी तरह ’मिनरल वाटर’ के नाम पर मिल रहे बोतलबंद पानी को लेकर भी मत भिन्नता है। ’आर ओ वाटर’ और ’मिनरल वाटर’ नहीं, तो शुद्ध पानी प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ विकल्प क्या ? पानी को ठंडा करने के लिए मिट्टी का मटका, रेफ्रिजरेटर से बेहतर विकल्प क्यों है ? मिट्टी का मटका पानी को शीतल ही नहीं करता, नाइट्रेट जैसी अशुद्धि से मुक्त करने का काम भी करता है। क्या यह हमारे साक्षर होने का विषय नहीं।
क्या सच नहीं कि हमें ऐसे कितने मसलों पर साक्षर होने की जरूरत है ? इन मसलों पर एक राय न होना ही जल के मामले में हमारे निरक्षर होने का पुख्ता सबूत है।
तकनीकी डिग्री-डिप्लोमा प्राप्त कितने ही लोग ऐसे हैं, संचयन ढंाचे बनाने के लिए जिन्हे न विविध भूगोल के अनुकूल स्थान का चयन करना आता है और न ही ढांचे का डिजायन बनाना। यदि हमारे सरकारी ढांचें में यह निरक्षरता न होती, तो मनरेगा के ज्यादातर ढांचें बेपानी न होते। भारत की कृषि को भूजल पर निर्भर बनाना अच्छा है या नहरी जल अथवा अन्य सतही ढांचों के जल पर ? क्या इसका उत्तर, पूरे भारत के लिए एक हो सकता है ? यदि हम अनुकूल माध्यम के बारे में साक्षर होते, तो ’स्वजल’ परियोजना के तहत् उत्तराखण्ड के ऊंचे पहाङी इलाकों में इंडिया मार्का हैण्डपम्प लगाने की बजाय, चाल-खाल बनाते।
अन्य प्राकृतिक संसाधनों को लेकर हमारी साक्षरता पर गौर कीजिए। कोई प्राकृतिक जंगल को सर्वश्रेष्ठ मानता है, तो किसी को इमारती जंगल बेहतर लगता है। किसी को गिद्ध, गौरैया, गाय, कौआ, बाघ, भालू, घङियाल, डाॅलफिन से लेकर अनेकानेक प्रजातियों की संख्या घटने से कोई फर्क नहीं पङता; अनेक हैं, जिन्हे फर्क पङता है। अभी दिल्ली के एक अस्थमा पीङित व्यक्ति से तीन ऐसे पौधों की खोज की, जिन्हे लगाकर हम अपने आसपास की हवा को साफ कर सकते हैं। किंतु हम में से ज्यादातर लोग यह नहीं जानते।
कहना न होगा कि पानी-हवा समेत कई ऐसे प्राकृतिक संसाधन हैं, जिनके दैनिक उपयोग और संरक्षण को लेकर भारतीय समाज के हर वर्ग को साक्षर होने की जरूरत है; नेता, अफसर, इंजीनियर, ठेकेदार, किसान से लेकर शिक्षक, वकील और डाॅक्टर तक। यदि हम इनके उपयोग और संरक्षण को लेकर साक्षर हो जायें, तो न मालूम अपना और अपने देश का कितने आर्थिक, प्राकृतिक और मानव संसाधनों को सेहतमंद बनाये रखने में सहायक हो जायें !
सद्ज्ञान से स्वावलंबन
हमारी दैनिक समस्याओं को लेकर आज हमारे समक्ष पेश ज्यादातर विकल्प, खरीद-बिक्री की रणनीति पर आधारित हैं। बाजार, कभी किसी ग्राहक को स्वावलंबी नहीं बनाता। अतः सच यही है कि इन विषयों की साक्षरता और स्वयं करने का कौशल ही हमें इन मामलों में स्वावलंबी बनायेंगे। अतः हमंे सिर्फ पानी-पर्यावरण ही नहीं, बल्कि विकास को टिकाये और बेहतरी की दिशा में गतिमान बनाये रखने के हर पहलू के प्रति साक्षर होने के प्रयास तेज कर देने चाहिए। रास्ते और रणनीति क्या हो ? इस पर सभी को अपने-अपने स्तर पर विमर्श और ज़मीनी काम शुरु कर देने चाहिए। इस अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर इस बाबत् हम स्वयं चेतें और राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के लोक चेतना केन्द्रों को भी चेतायें।
मददगार तकनीक, साझे से समग्रता
यूनेस्को के महानिदेशक ने इस बाबत् अपने सभी सहभागी देशों से निवेदन किया है कि संपूर्ण साक्षरता लक्ष्य हासिल करने हेतु वे मोबाइल फोन समेत उपलब्ध आधुनिक तकनीक को एक ताजा अवसर के तौर पर लें। उम्मीद है कि भारत में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, जल संसाधन, कृषि, पर्यावरण, संचार और सूचना से संबद्ध मंत्रालय इस दिशा में कुछ सोचेंगे और संयुक्त रूप से कुछ करेंगे।

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NOW ULTRASOUND IS POSSIBLE IN BONES & JOINTS

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07 September, 2015
It quite often happens that in the event of a pathology of bones and joints,  basic investigation of X-ray does not detect any injury and due to multiple reasons,  a conclusive diagnosis is not reached… In certain types of injuries, especially in children and elderly with very osteoporotic bones  X-rays fail to identify fractures , which leaves both the patient and  doctor perplexed. In these situations, a doctor has to rely on higher modalities of CT and MRI which are not only expensive for the patient but at many a times,  uncomfortable , hazardous in case of certain cardiac produces having been done  and in case of children relatively detrimental to growing young bones. High frequency Ultrasound has come as  a boon for such and many other conditions in evaluation of  bones and joints. It has proven  to be quite effective in giving a  diagnosis and facilitating treatment especially in emergency situations.
Musculoskeletal Ultrasound Society (MUS) organized a press conference to update  the media and the public about the rising popularity  of this modality  called Musculoskeletal Ultrasound (MSUS) , which is quite firmly  established in the West, and is now slowly gaining roots  in India as well. With the same machines but  Higher  frequency  ( 5 MHz- 18 MHz) Linear  probes, radiologists can now perform the ultrasound of bones, joints and muscles to identify fractures, ligament tears, bending of bones (common in children). This is specially useful in  those patients who are claustrophobic and do not want to get into the gantry of  CT or MRI machine , as well as in those who cannot be prescribed MRI due to presence of pacemakers, implants, etc.
Speaking at the conference, was its organiser Dr Nidhi Bhatnagar,  MSUS Specialist Radiologist at Sanjeevan Hospital  and Secretary,  MUS who said “Musculoskeletal Ultrasound addresses two major issues in diagnostics today, cost-effectiveness and Ease of  availability. It is a very effective complimentary dynamic multi-planar modality to other existing cross-sectional modalities and has its firm advantages and applications in the evaluation of MSK pathologies.  If an  Ultrasonologist is equipped  and has the necessary know-how, he can easily perform a Musculoskeletal Ultrasound  to give accurate diagnosis. The only pitfall is a steep learning curve and dearth of credible / accredited teaching programs which Muskuloskeletal Ultrasound Society is providing continually to help MSUS come of age in India too”
Dr Dhananjay Gupta, Sr Arthoscopic and Joint replacement surgeon and Secy Delhi Orthopedic association said, “ Many of my patients have got implants orprosthesis inside their body, which makes it difficult  for them to have an MRI. Such problems also exist with cardiac patients with stents, pacemakers. Musculoskeletal Ultrasound ( a.k.a MSK USG) is the only alternative available for diagnosis in such patients. Moreover, children have soft bones, which don’t breakbut bend with an injury. This bend may not be  appreciated on an MRI, but can beeasily diagnosed with an MSK USG with  less time , money and effort .”
1                                                                  PTO.
In  children, where CT , a  radiation based modality and with an MRI we need  to be given sedation, High frequency  ultrasound of bones and joints is  a much comfortable and easier alternative. Its also recommended for identifying tissue tumours, soft tissue injuries, in presence of foreign bodies especially non-metallic ones like wooden splinters, or thorns which may less easily appreciated with  other modalities.
On the use of this modality Dr Sudhir Gupta, leading Radiologist , CEO Cygnus Group of Hospitals and President elect Delhi State IRIA said, “ This modality is and has been a routine investigative tool in  the US, for  past 20 years It  is relatively  a new concept  in India, primarily due to lack of awareness  not only amongst the patients but also amongst Medical community. Since the clinicians and orthopedicians thought of it as a myth, radiologists found themselves on a back foot too. To summarize, MSUS is   an important investigation  providing  valuable information at much less a cost, being non-radiation dependent, has ease of operability and availability , gives quick results, can perform multiple simultaneous evaluations should need be in the same sitting, multiple reviews without fear of harmful effects, no sedations, no contraindications and above all  a fantastic modality in  emergency conditions.
Dr. Gothi is firmly of the opinion that Ultrasound should be a tool like an extended stethescope and the applications should be widely applied to all specialities . The maximum benefit is delivered only when a modality is not restricted and is utilized at every stage of learning .’
About  Musculoskeletal Ultrasound Society (MUS)
MUS consists of group of professionals from the fields of Radiology, Orthopaedics, Rheumatology and Anaesthesia ( Pain Management), Sports Medicine from New Delhi who have a passion for furthering the application of Ultrasound in the diagnosis of MSK pathologies. Its under-utilization amongst clinicians propelled  thoughts into creation of a Society by the name of Musculoskeletal Ultrasound Society (MUS) which as per our expectations has  unfolded into a great teaching and learning  Institution.
Our team  comprises of Dr. R.K.Mathur, Senior Radiologist and Patron, MUS , Dr Rajesh Gothi, Chief Radiologist Saket city hospital, New Delhi, Lt. Gen. Dr.  Ved Chaturvedi, Chief Rheumatologist, Ganga Ram Hospital, Dr. Anmol Maria, Senior Orthopedician and Joint replacement Surgeon, Dr Dhananjay Gupta, Secretary DOA and Senior Orthopedician, , Dr.Sanjay Thulkar (AIIMS , Ass. Prof Radiology), Dr. Pankaj Surange ( Consultant Pain Mgt, Anaesthesia), Dr.Sudhir Gupta (Senior Radilogist , CEO, Cygnus Gp, President Elect Delhi state IRIA) ,, Mr Anil Srivastava ( Senior Tech Advisor) , Dr. Manoj Sharma ( Senior Radiologist, Rockland Hospital.), Dr. Renu Dhingra ( Ass Prof., AIIMS, Anatomy).

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