Sunday, 7 September 2014

AAP : Arvind letter to President of India

7092014
पत्र सं आम आदमी पार्टी / एके/2014/010

                                                                            दिनांक: 6 सितम्बर 2014
महामहिम राष्ट्रपति
राष्ट्रपति भवन,
नई दिल्ली.

महोदय,


आम आदमी पार्टी ने सात महीने पहले विधानसभा भंग करने की सिफारिश के बाद इस्तीफा दे दिया था। तब से यानि पिछले सात महीने से दिल्ली विधानसभा निलंबित अवस्था में है। हमारी सरकार ने विधानसभा को भंग करने की सिफारिश इसलिए की थी जिससे दिल्ली में दोबारा चुनाव कराए जाएं और दिल्ली में बहुमत की सरकार बन सके।
मौजूदा विधानसभा के 67 सदस्यों में से 29 भाजपा/शिरोमणि अकाली दल से, 28 आम आदमी पार्टी से(जिनमें से एक निष्कासित) 8 कांग्रेस से, 1 जनता दल यूनाइटेड से और एक निर्दलीय सदस्य है। गणित के हिसाब से यदि कोई बड़ी पार्टी किसी दूसरी पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन ना दे तो ऐसे हालात में किसी भी पार्टी के लिए सरकार बनाना संभव नहीं है।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वे दिल्ली में सरकार बनाने के पक्ष में नहीं है और न ही वे किसी और पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देंगे। ऐसी परिस्थिति में किसी भी दल के लिए संभव नहीं है कि वह बहुमत की सरकार बना सके। ऐसे हालात में दिल्ली में नए सिरे से चुनाव कराना ही एकमात्र विकल्प बचता है जिससे दिल्ली की जनता को चुनी हुई सरकार मिल सके, जो कि दिल्ली के लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है।
मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने हाल ही में आपके समक्ष एक सिफारिश भेजी है जिसमें सिफारिश की गई है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए। इस तरह कि सिफारिश दूसरे दलों के लिए तोड़-फोड़ और विधायकों की खरीद फरोख्त से दिल्ली में सरकार बनाने का खुला आमंत्रण है।  संविधान में इसकी साफ मनाही है। ये कहा जा रहा है कि ऐसे दल के नेता को भी सरकार गठन का न्यौता दिया जा सकता है जिस पार्टी के पास सदन में बहुमत ना हो। इस तरह की कवायद सिर्फ दो परिस्थितियों में हो सकती है। 1. ऐसी पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाए. जिसके पास बेशक सदन में बहुमत ना हो पर दूसरे दलों से या निर्दलीय विधायकों से समर्थन देने की पेशकश की हो। जिससे इस दल के पास सदन में बहुमत की संख्या पूरी हो जाती हो।. 2. दूसरी स्थिति यह है कि विधानसभा में कई पार्टियां हो और स्पष्ट ना हो की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत होगा या नहीं।
दिल्ली विधानसभा में आज इन दोनों में से कोई भी स्थिति नहीं है। यह बिलकुल साफ है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के समर्थन बगैर बीजेपी के लिए विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर पाना संभव नहीं है। ऐसे में बीजेपी को विश्वासमत तभी मिल सकती है जब वो इन दोनों पार्टियों में तोड़-फोड़ करे।  
बीजेपी ने पिछले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव के तुरत बाद सरकार बनाने से साफ इंकार कर दिया था। उस वक्त उसने तर्क दिया था उसके पास पर्याप्त संख्या नहीं है। मेरे इस्तीफे के तुरत बाद फरवरी में भी बीजेपी ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया। उपराज्यपाल ने फरवरी में दिल्ली विधानसभा को निलंबन अवस्था में डाल दिया यह कहते हुए कि मौजूदा स्थिति में दिल्ली में सरकार बनना संभव नहीं है। उस वक्त विधानसभा में बीजेपी के 32 सदस्य थे। वर्तमान में बीजेपी के विधायकों की संख्या 32 से घटकर 29 हो गई है। बीजेपी ने अब तक दिसंबर में लिखा अपना वह पत्र भी वापस नहीं लिया है जिसमें पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाने की असमर्थता जताई थी। बीजेपी ने कभी दावा भी नहीं किया है कि वह अपने बलबूते सरकार बनाएगी। बीजेपी ने कभी यह भी दावा नहीं किया है कि सरकार बनाने के लिए उसके पास सदस्यों की पर्याप्त संख्या है। ऐसे में कौन सी ऐसी परिस्थितियां हैं जिसकी वजह से उपराज्यपाल को अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा? यदि मीडिया में आ रही खबरे सही है तो उपराज्यपाल ने किस आधार पर सिफारिश की कि बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता मिलना चाहिए? जबकि बीजेपी खुद बहुमत होने का दावा नहीं कर रही है?
ऐसे हालात में , बीजेपी को सरकार बनाने के लिए न्योता देने के एलजी के फैसले से सीधे-सीधे विधायकों की खरीद फरोख्त को बढ़ावा मिलेगा और यह न केवल पूरी तरह असंवैधानिक होगा बल्कि लोकतंत्र की हत्या करने जैसा होगा। राष्ट्रपति महोदय, मैं आपसे गुजारिश करता हूं कि उपराज्यपाल कि असंवैधानिक सिफारिश पर गौर न करते हुए अपने विवेक से दिल्ली विधानसभा को भंग करने और दिल्ली में नए सिरे से चुनाव करना का फैसला ले। दिल्ली की जनता के हक में भी यही है।

बहुत-बहुत धन्यवाद,
भवदीय,
अरविंद केजरीवाल

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